धर्मराज जी की कहानी 3 Best Story of Dharmaraj

धर्मराज की कहानी पढ़ना बहुत ही बड़ा पुण्य का काम है धर्मराज देवता हमारे जीवन में किए गए कर्मों के पाप और पुण्य का लेखा जोखा रखते हैं इसलिए हमें इसलिए धर्मराज की कहानी अवश्य पढ़ना चाहिए और उनका भजन गुड़गांव अवश्य करना चाहिए इस पोस्ट में धर्मराज के 3 बेस्ट कहानी दी गई है जिसे आप पढ़ सकते हैं

Story of Dharmaraj धर्मराज जी की कहानी

धर्मराज जी की कहानी 1-

धर्मराज की व्रत कथा सुनने से मिलती है मोक्ष की प्राप्ति एक ब्राह्मणी मरकर भगवान के घर गई । वहाँ जाकर बोली , मुझे धर्मराज जी के मन्दिर का रास्ता बता दो। स्वर्ग से एक दूत आया और बोला , ब्राह्मणी आपको क्या चाहिए । वो बोली मुझे धर्मराज मन्दिर का रास्ता बता दो । आगे आगे दूत और पीछे ब्राह्मणी मन्दिर तक गये , ब्राह्मणी बहुत धार्मिक महिला थी

उसने बहुत दान पुण्य कर रखा था उसे विश्वास था की उसके लिए धर्मराजजी के मन्दिर का रास्ता अवश्य खुल जायेगा । ब्राह्मणी ने वहाँ जाकर देखा वहाँ बड़ा सा मन्दिर , सोने का सिंहासन , हीरे मोती से जड़ित छतरी थी। धर्मराजजी न्याय सभा में बैठे साक्षात् इन्द्र के समान शोभा पा रहे थे और न्याय नीति से अपना राज्य संभाल रहे थे। यमराज जी सबको कर्मानुसार दंड दे रहे थे।

ब्राह्मणी ने जाकर प्रणाम किया और बोली मुझे वैकुण्ठ जाना हैं। धर्मराज जी ने चित्रगुप्त से कहाँ लेखा जोखा सुनाओ । चित्रगुप्त ने लेखा सुनाया , सुनकर धर्मराज जी ने कहाँ तुमने सब धर्म किये पर धर्मराज जी की कहानी नहीं सुनी , वैकुण्ठ में कैसे जायेगी। बुढ़िया बोली ‘ धर्मराज जी की कहानी के क्या नियम हैं

धर्म राज जी बोले – कोई एक साल , कोई छ: महीने , कोई सात दिन ही सुने पर धर्मराज जी की कहानी अवश्य सुने। फिर उसका उद्यापन कर दे। उद्यापन में काठी , छतरी , चप्पल , बाल्टी रस्सी , टोकरी , टोर्च ,साड़ी ब्लाउज का बेस, लोटे में शक्कर भरकर, पांच बर्तन, छ: मोती, छ: मूंगा, यमराज जी की लोहे की मूर्ति, धर्मराज जी की सोने की मूर्ति, चांदी का चाँद, सोने का सूरज, चांदी का साठिया ब्राह्मण को दान करे।

अगर यह सब कुछ दान करना संभव न हो तो आप अपने समर्थ के अनुसार ही दान करें। प्रतिदिन चावल का साठिया बनाकर कहानी सुने। यह बात सुनकर ब्राह्मणी बोली भगवान मुझे सात दिन वापस पृथ्वी लोक पर जाने दो में कहानी सुनकर वापस आ जाउंगी।

धर्मराज जी ने उसका लेखा जोखा देखकर सात दिन के लिए पृथ्वी पर भेज दिया। ब्राह्मणी जीवित हो गई और उसने अपने परिवार वालों से कहा की मैं सात दिन के लिए धर्मराज जी की कहानी सुनने के लिए वापस आई हूँ इस कथा को सुनने से बड़ा पुण्य मिलता हैं, उसने चावल का साठिया बनाकर परिवार के साथ सात दिन तक धर्मराज जी की कथा सुनी। सात दिन पुरे होने पर वापस धर्मराज जी का बुलावा आया और ब्राह्मणी को वैकुण्ठ में श्री हरी के चरणों में स्थान मिला।

धर्मराज जी की कहानी 2 –

प्राचीन काल मे बबरुवाहन नामक एक राजा था । वह बड़ा धर्मात्मा और दयालु था । उसके राज्य मे हरीदास नाम का एक ब्राह्मण था । हरीदास बड़ा तपस्वी था । उसकी पत्नी का नाम गुणवती था । वह बहुत ही सुशील और धर्मवती थी । गुणवती पतिव्रता और भगवान की बड़ी भक्त थी । गुणवती ने अपने जीवन मे सभी देवी देवताओं की उपासना की । एकादशी , महाशिवरात्रि तथा जन्माष्टमी आदि सभी व्रत विधि विधान से करती थी । वह यथाशक्ति दान पुण्य भी करती रहती थी । अतिथि सेवा से भी वह कभी विमुख नहीं रही । इस प्रकार जीवन भर वह धर्म परायण रही । वृद्धावस्था मे जब उसका देहांत हुआ तो धर्मराज जी के दूत उसे आदर पूर्वक धर्मराजपुर ले गए ।

धर्मराजपुर मे सुंदर सिंहासन पर धर्मराज जी भगवान विराजमान थे । उनके पास ही चित्रगुप्त जी का स्थान था । चित्रगुप्त जी मृत प्राणियों के पाप पुण्य का लेखा धर्मराज जी को सुना रहे थे । गुणवती भयभीत हुई वहाँ नीचे मुँह करके खड़ी हो गई । चित्रगुप्त जी ने उसके पाप पुण्य का ब्योरा धर्मराज जी को दिया । जिसे सुनकर धर्मराज जी को प्रसन्नता हुई । किन्तु कुछ उदासी उनके मुख मण्डल पर छा गई । यह देखकर गुणवती ने पूछा मैंने अपने जीवन मे कोई दुष्कर्म नहीं किया । फिर भी आपके मुख पर उदासी क्यों है । कृपा करके बताएं ।

धर्म राज जी ने कहा – हे देवी , तुमने सभी देवी देवताओं को व्रत आदि से संतुष्ट किया है । लेकिन मेरे नाम से तुमने कुछ भी पूजा पाठ या दान पुण्य आदि नहीं किया। यह सुनकर गुणवती ने धर्मराज जी से क्षमा याचना की और कहा कि मैं आपकी उपासना नहीं जानती थी । कृपा करके वो उपाय बताइए जिससे सभी मनुष्य आपकी कृपा के पात्र बन सकें । यदि मैं आपके मुख से आपके भक्ति मार्ग को सुनकर मृत्यु लोक वापस जा सकूँ तो आपको संतुष्ट करने का प्रयास अवश्य ही करूंगी ।

धर्मराज जी ने बताया – मकर संक्रांति के दिन जब सूर्य भगवान उत्तरायण में प्रवेश करते हैं , उस दिन से मेरी पूजा शुरू करनी चाहिए । पूरे एक साल तक मेरी पूजा करे और मेरी कथा सुने । एक दिन भी पूजा या कथा छूटनी नहीं चाहिए । साथ ही धर्म के इन दस नियमों का पालन करें –

  1. धृति अर्थात धीरज रखना तथा संतुष्ट रहना
  2. क्षमा करना और मन को वश मे रखना
  3. चोरी ना करना
  4. मन से पर पुरुष या पर स्त्री से बचना अर्थात मानसिक और शारीरिक शुद्धि
  5. इंद्रियों को वश मे रखना
  6. बुद्धि की पवित्रता यानि बुरे विचार ना करना
  7. पूजा पाठ तथा दान पुण्य करना
  8. व्रत करना और व्रत की कहानी सुनना
  9. सच बोलना और सच्चा व्यवहार करना
  10. क्रोध ना करना

धर्म के इन दस लक्षण का पालन करे । मेरी कथा नियम से सुनता रहे । दान पुण्य और परोपकार करता रहे । वर्ष भर बाद मकर संक्रांति आए तब इस व्रत का उद्यापन करे । अपने सामर्थ्य के अनुसार मेरी मूर्ति बनवाकर विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा करवा करके पूजा और हवन करे । साथ ही चित्रगुप्त जी की पूजा भी करे । काले तिल के लड्डू का भोग लगाए । ब्राह्मण भोजन कराए। बांस की टोकरी मे पाँच सेर अनाज दान करे । इसके अलावा गद्दा , तकिया , कंबल , चप्पल , लोटा , तथा वस्त्र आदि देने चाहिए । हो सके तो गाय का दान भी करे ।

धर्मराज जी की बातें सुनकर गुणवती ने विनती की – हे प्रभो ! मुझे फिर से मृत्यु-लोक में जाने दें । जिससे मैं आपके व्रत को करूँ और इस व्रत का प्रचार भी लोगों मे कर सकूँ। धर्मराज जी ने इसके लिये अपनी सहमति दे दी। गुणवती वापस जीवित हो गई । उसके शरीर में जान आ गई। वह उठ कर खड़ी हो गई । उसके सभी परिवार जन बड़े प्रसन्न हुए । गुणवती ने धर्मराज जी वाली सभी बातें अपनी पति को बताई। उसने कहा हम धर्मराज जी का व्रत अवश्य करेंगे तथा धर्म का पालन भी करेंगे ।

मकर संक्राति आने पर गुणवती और उसके पति ने धर्मराज जी के निमित्त व्रत शुरु किया। एक वर्ष के बाद विधि विधान से इस व्रत का उद्यापन किया। इस व्रत के प्रभाव से उन्हे धर्मराज जी की कृपा प्राप्त हुई और उन्हे मोक्ष तथा स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

कथा समाप्त ।

बोलो – धर्मराज जी की …. जय ।।

धर्मराज जी की कहानी3 –

एक बुढ़िया माई थी। वह व्रत -नियम बहुत रखती थी। एक दिन भगवान के घर से यमदूत लेने आए। बुढ़िया माई यमदूत के साथ चली गई। आगे गहरी नदी बह रही थी। बुढ़िया माई डूबने लगी तब

यमराज जी ने पूछा -माई गाय दान की हुई है क्या? तब बुढ़िया माई ने मन मे गाय माता का ध्यान किया तो गाय उपस्थित हो गयी। गाय की पूंछ पकड़कर बुढ़िया माई नदी पार हो गयी। आगे गयी तो काले कुत्ते खाने दौड़े, तब यमराज जी ने पूछा- कुते को रोटी दी है क्या? बुढ़िया माई ने कुत्ते का ध्यान किया तो कुत्ते चले गए। आगे चली तो काले कोए बुढ़िया माई को चोंच मारने लगे।तब यमराज जी ने कहा कि ब्रह्मण की बेटी को सिर में तेल लगाने को दिया है कि नही? बुढ़िया माई ने ब्रह्मण की बेटी को याद किया तो कोए ने चोंच मारना छोड़ दिया। आगे गयी तो पैरो में कांटे चुभने लगे। तब यमराज जी ने कहा कि चप्पल दान की है क्या? बुढ़िया माई ने याद किया तो चप्पल पेर में आ गई। आगे चली तो चित्रगुप्त जी ने यमराज जी से कहा- आप किसको ले आए हो?

तब यमराज जी ने कहा कि बुढ़िया माई ने दान पुण्य तो बहुत किए हैं, पर धर्मराज जी का कुछ नहीं किया, इसलिए आगे के द्वार बंद है। तब बुढ़िया माई बोली कि मुझे सात दिनों के लिए धरती पर जाने की आज्ञा दो। सात दिनों तक कहानी सुनकर उद्यापन करने के बाद वापस आ जाऊँगी। बुढ़िया माई वापस धरती पर आ गई। पूरे गाँव में खबर फैल गई कि बुढ़िया माई भूतनी बनकर आ गई। जब वह अपने घर गई तो बेटे बहु ने भूतनी समझकर घर के दरवाजे बंद कर दिये। तब उसने अपने बेटे और बहू को कहा कि मैं भूतनी नही हूँ। मैं तो धर्मराज के कहने के अनुसार वापस आयी हूँ।

मैं नियम अनुसार धर्मराज की कहानी सुनकर, उद्यापन करके वापस परलोक चली जाऊँगी। यह सुनकर बेटे ने उद्यापन की पूजा की सभी सामग्री एकत्रित कर दी लेकिन कहानी का हुंकारा नही भरा। तब बुढ़िया पड़ोसन के पास गई और कहानी सुनने को कहा। पड़ोसन ने कहानी सुन ली और हुंकारा भर दिया।

बुढ़िया माई ने सात दिनों के पश्चात कहानी सुनकर उद्यापन कर दिया और सभी समान दान कर दिया।तब धर्मराजजी ने बुढ़िया माई के लिये धरती पर विमान भेजा। विमान देख सभी गांव वासी स्वर्ग जाने को तैयार हो उठे।बुढ़िया माई बोली-कि मेरी कहानी तो सिर्फ पडोसन ने ही सुनी हैं, तो सभी गांव वालों ने बुढ़िया माई के पाव पकड़ लिए और धर्मराजजी की कहानी सुनाने का आग्रह किया।

कहानी सुनने के बाद सभी विमान में बैठ कर स्वर्ग पहुंचे तो धर्मराजजी ने कहा-कि मैने तो सिर्फ बुढ़िया माई के लिये विमान भेजा था।पर यहाँ तो सभी गाँव वाले आ गए। तब बुढ़िया माई ने कहा-कि मेरी कहानी इन सभी ने सुनी है,इसलिए आधा पुण्य इनको भी दो। तब धर्मराजजी ने सभी गाँव वालो को स्वर्ग में वास दिया। हे धर्मराजजी महाराज जैसे बुढ़िया माई को स्वर्ग में वास दिया वैसे सभी लिखने -पढ़ने हुँकारी भरने वालो का कल्याण करो।

बोलो धर्मराजजी, यमराज जी की जय

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धर्मराज जी कौन थे?

यमराज का ही एक रूप सौम्यरूप धर्मराज का है, अत: उन्हें धर्मराज कहा जाता है।

धर्मराज का व्रत कब किया जाता है?

धर्मराज का व्रत संक्रांति के दिन ही किया जाता है।

धर्मराज किसे कहा गया है धरती के सम्बन्ध में उन्हें क्या बताया गया है?

भीष्म पितामह युधिष्ठिर को ‘धर्मराज’ नाम से बुलाते है क्योंकि वह सदैव न्याय का पक्ष लेता है और कभी किसी के साथ अन्याय नहीं होने देता।

धर्मराजू का दूसरा नाम क्या है?

धर्मराज, महाभारत में युधिष्ठिर का एक नाम है।

यमराज को धर्मराज क्यों कहा जाता है?

सनातन शाश्वत (न कभी आरंभ न ही अंत) को संदर्भित करता है। धर्म का अर्थ है धार्मिकता का मार्ग। जो आज भी नवीकृत है, सनातन कहलाता है।

धर्मराज जी का उद्यापन कैसे किया जाता है?

उद्यापन में काठी , छतरी , चप्पल , बाल्टी रस्सी , टोकरी , टोर्च ,साड़ी ब्लाउज का बेस, लोटे में शक्कर भरकर, पांच बर्तन, छ: मोती, छ: मूंगा, यमराज जी की लोहे की मूर्ति, धर्मराज जी की सोने की मूर्ति, चांदी का चाँद, सोने का सूरज, चांदी का साठिया ब्राह्मण को दान करे।

धर्मराज युधिष्ठिर को क्यों कहा जाता है?

उन्होंने संपूर्ण जीवन सत्य का आचरण किया तथा सत्य को अपना धर्म समझा। यही कारण था कि वह धर्मराज कहलाए।

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