नमस्कार दोस्तों यदि आप short poem on mother हिंदी में छोटी छोटी कविताएं ढूंढ रहे हैं तो आप सही जगह पर आए हैं हमारे पास 50 से अधिक Small Poem छोटी छोटी कविताएं हैं जो आपके दिमाग का और आपके मन को तरोताजा कर देगी
इस पोस्ट में मैं छोटी Poem लिखने का फैसला किया हूं जो लगभग 2 लाइन की होगी इस Poem में मैंने मां के ऊपर कठिनाइयों और उसके ऊपर उपस्थित सारी परेशानियों के विषय मे पोयम के माध्यम से समझाने की कोशिश किया हूं
इसमें मैंने 50 से अधिक छोटी पोयम Small Poem लिखी है जो हमें उम्मीद है कि आप लोगों के बहुत अच्छी लगेगी
Short poem on mother
- माँ पावन बहती गंगा पिता हिमालय है
उनकी गोद में ही महा शिवालय है। - छोटी – छोटी ख़ुशियों को पूरा करती माँ है
बड़े सपने को साकार करता पिता है। - मेरे पापा चाँद सितारों के बीच जगमगाते हैं
वो हर दिन मुझे याद आते हैं. - उनकी याद में अक्सर आँखें नम हो जाती है
जीवन की अनेकों खुशियाँ कम हो जाती है। - मां कहती है नानी बूढ़ी हो गई है
बिल्कुल छोटी सी बच्ची हो गई है - छोटी छोटी सी बातों पर रूठ जाती है
नानी मुंह फुलायें चुपचाप बैठ जाती है - कभी-कभी भूल जाती है कि अभी खाना खाया
फिर थोड़ी देर बाद खाना मांगने लग जाती हैं - नजरों में मेरी जेब तलाशने लग जाती हैं
कभी चॉकलेट कभी कैंडी़ज ढूंडने लग जाती हैं - कभी छोटे बच्चों की तरह रो देती है
कभी मुस्कुरा कर खेलने को कहती हैं - मां कहती है नानी बूढ़ी हो गई है
बिल्कुल छोटी सी बच्ची हो गई हैं.. - वो पल्लू में बांधकर चंद सिक्के
गृहस्थी अपनी चला लेती थी - वो छोटी सी ताक में बुरे वक्त का
बैंक रख रीति-रिवाज निभाती थी। - छिपाकर दर्द को वो मुस्कुराती थी
पर आखिर कब तक……….? - दर्द वोअपना छिपाती…! चिड़चिड़ी
अपने ही दर्द से हो जाती थी। - वो हर जख्म को मरहम सिर पर
रखकर हाथ स्नेह का लगाती थी। - लगाकर पाँती अपनी ओढनी में,
औरों के शौक पूरे कर देती थी। - वो सब की थाली परोस कर,
चुपके से पानी के दो घूंट पी पेट - वो भर लेती थी,जाड़े में ठिठुरती,
बारिश में टपकती छत के नीचे - वो रोटी हंसकर पो लेती थी।
रिश्तों को निभाने को शब्द-बाण - के घाव वो आत्मा पर सह लेती थी
जहर का घूंट पी आत्मसम्मान से - समझौता वो हर-बार कर लेती थी।
वो”माँ” हैअंजली भर बलायें लेती है, - आंचल में छुपा कर दर्द सह लेती है। मिटाकर अपना
अस्तित्व आज भी वो बच्चों का भविष्य निर्माण कर लेती है। - तब वो थी,आज मैं हूं वो भी मां थी, मैं भी हूं
वक्त और जमाने से परे बस एक एहसास हूं - अपने बच्चों की चाहत उनका विश्वास हूं
जब से होश संभाला उसे पूरे दिन दौड़ते देखा - कभी बाबूजी की फरमाइशें कभी दादा-दादी की जिम्मेदारियां
कभी बच्चों की हठ उसे भाग-भागकर पूरी करते देखा - मां के जाने के बाद अब वो घर विराना सा लगता
मायके जाने का मन तो करता पर दिल नहीं करता - आज जब मैं मां हूं कोशिश करती परछाई बनने की
अपनी जिम्मेदारियों के साथ मां की तरह जीने की - जब कदम थकते हैं उसको याद करती हूं
फिर जोश से भर दिल ही दिल में धन्यवाद कहती हूं - वक्त और जमाना मां को बांट कहां सका कभी
कल की मां,आज की मां ये बात व्यर्थ ही रही - मां के पहनावे से ममत्व कैसे नाप सकते हो
वो चाहे साड़ी में, जीन्स में या फ्राक में ही क्यों ना हो - मां ‘मां’ थी,मां है और मां ही रहेगी
सारे रिश्ते बदल जाए पर मां नहीं बदलेगी - कुछ लोगों ने मां को कितना लाचार कर दिया
जीन्स वाली मां से आंचल का मांग कर दिया - मां की ममता इतनी छोटी कब से हो गई
पोशाक में भला ममता कब से नप गई - हर सदी में क्या उसकी यही नियति होगी
खुद धूप में जलकर जब अपने टुकड़े को बचायेगी - तब मां होने का प्रशस्ति पत्र पायेगी
- समय के साथ बदलने की वो शक्ति रखती है
अब आंचल नहीं रखती पर वो छतरी रखती है - बच्चे के साथ-साथ खुद को भी बचाती है
समय की मांग है उसे दूर तक जाना है - सिर्फ मां ही नहीं उसे साथी भी बनना है
गुरु बनकर झंझावातों से लड़ना भी सिखाना है - लंबी दूरी तक उसका हमसफ़र बनना है
इन छोटी-छोटी लौकिक चीजों से उसे मत मापो - वो सागर है उसे सागर की तरह ही बहने दो
वक़्त और पोशाक की दीवारों से बांधकर, - तालाब न बनने दो इन सबसे परे वो जो थी वही रहेगी
सबकुछ बदल जाए पर मां ‘मां’ ही रहेगी - मेरे सपनों में परिया फूल तितली भी तभी तक थे.
मुझे आंचल में लेकर अपने लेटी रही माँ. - बड़ी छोटी रकम से घर चलाना जानती थी माँ
कमी थी बड़ी पर खुशियाँ जुटाना जानती थी माँ. - मै खुशहाली में भी रिश्तो में दुरी बना पाया.
गरीबी में भी हर रिश्ता निभाना जानती थी माँ. - माँ रोज़ चुग्गा ला ,बच्चों को खिलाती,
आंधी हो तूफान ,वापस जरूर आती - क्रम यूं ही चलता रहा ,बच्चे अब बड़े हुए ,
चिड़िया के या इंसान के हुए उनके अब नये घरौंदे हुए - पर माँ तो वही पुरानी है,दिल की एक निशानी है,
अब भी आते अक्सर मिलते फिर वापस जाते - कुछ वक्त बीता,सब अपने में जीता,माँ कुछ डरी सी सहमी,घना अंधेरा रात तूफानी था
वो उसका अंतिम पढाव,बच्चों से था बहुत लगाव,माँ को इंतजार था - बच्चों से मिलने को थी बेकरार ,बच्चों ने मुँह फेरा ,
आखिर बन चुका था सबका अपना ढेरा - माँ की आँखे पथराई ,कभी-कभी डबडबाई ,
माँ अब भी है उदास ,पर कुछ बच्चे हैं साथ - कैसे समझाऊँ माँ को ये आज ,कि हम हैं ना तुम्हारे पास ,
कैसे समझाऊँ उन बच्चों को ये बात - कि माँ की लाचारी दिखती है साफ ,
माँ शान्त है ,अन्दर उसके भूचाल है - करती तो वो बात है ,पर सताती बच्चों की याद है,
मुझे एक बात जेहन में आती, उन बच्चों को ना समझा पाती - कि आज जो माँ के साथ ना होगा,
कल उनके साथ भी भला कौन होगा