नमस्कार करने के कई तरीके हैं। नमस्कार के प्रत्येक रूप को करने के इरादे के साथ-साथ विभिन्न मुद्राओं या पदों और विधियों की चर्चा और व्याख्या इस श्रृंखला में की गई है।
‘नमस्कार’ शब्द की उत्पत्ति और अर्थ
‘नमस्कार’ शब्द ‘नमः’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है नमस्कार या नमस्कार करना। नमस्ते या नमस्कार मुख्यतः हिन्दुओं और भारतीयों द्वारा एक दूसरे से मिलने पर अभिवादन और विनम्रता प्रदर्शित करने हेतु प्रयुक्त शब्द है। इस भाव का अर्थ है कि सभी मनुष्यों के हृदय में एक दैवीय चेतना और प्रकाश है जो अनाहत चक्र (हृदय चक्र) में स्थित है। यह शब्द संस्कृत के नमस् शब्द से निकला है।
न्याय के विज्ञान से – ‘नमः’ एक शारीरिक क्रिया है जो यह व्यक्त करती है कि ‘आप सभी गुणों और हर तरह से मुझसे श्रेष्ठ हैं’। किसी को नमस्कार करने का मुख्य उद्देश्य आध्यात्मिक के साथ-साथ सांसारिक लाभ प्राप्त करना है।
सांसारिक लाभ- किसी देवता या संत को नमस्कार करने से अनजाने में उनके गुण और क्षमताएं हमारे मन पर आ जाती हैं। नतीजतन हम उनका अनुकरण करना शुरू कर देते हैं, इस प्रकार खुद को बेहतर के लिए बदलते हैं।
आध्यात्मिक लाभ- नम्रता में वृद्धि और अहंकार में कमी, नमस्कार करते समय, जब कोई सोचता है, ‘तुम मुझसे श्रेष्ठ हो; मैं अधीनस्थ हूं। मैं कुछ नहीं जानता, तुम सर्वज्ञ हो’, तभी यह अहंकार को कम करने और नम्रता बढ़ाने में मदद करता है।
समर्पण और कृतज्ञता की आध्यात्मिक भावना में वृद्धि
नमस्कार करते समय जब ‘मैं कुछ नहीं जानता’, ‘आप अकेले ही सब कुछ करवाते हैं’, ‘मुझे अपने पवित्र चरणों में स्थान दें’ जैसे विचार आते हैं, तभी यह समर्पण और कृतज्ञता की आध्यात्मिक भावना को बढ़ाने में मदद करता है। .
सत्त्वगुण की प्राप्ति और तेज आध्यात्मिक प्रगति- पूजा स्थलों पर जाते समय और देवताओं के दर्शन करते समय या किसी बुजुर्ग या किसी सम्मानित व्यक्ति से मिलने के बाद हमारे हाथ स्वतः ही नमस्कार में जुड़ जाते हैं। नमस्कार हिंदू मन पर एक सत्व प्रधान प्रभाव है, एक ऐसा कार्य जो हिंदू संस्कृति की समृद्ध विरासत को बनाए रखता है। नमस्कार भक्ति, प्रेम, सम्मान और नम्रता जैसे दिव्य गुणों की अभिव्यक्ति का एक सरल और सुंदर कार्य है जो किसी को दैवीय ऊर्जा प्रदान करता है।
आजकल शायद अध्यात्म विज्ञान की अज्ञानता या पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण बहुत से लोग हाथ मिलाते हैं।
नमस्कार करने की सही विधि क्या है
। ‘भगवान को प्रणाम करते हुए हथेलियों को एक साथ लाएं।
1. हाथों या हथेलियों को मिलाते समय उंगलियों को ढीला (सीधी और कठोर नहीं) रखना चाहिए।
2. उंगलियों के बीच कोई जगह छोड़े बिना एक दूसरे के करीब रखना चाहिए।
3. उंगलियों को अंगूठे से दूर रखना चाहिए।
4. हथेलियों का अंदरूनी हिस्सा एक दूसरे को नहीं छूना चाहिए और उनके बीच कुछ जगह होनी चाहिए।
5. हाथ मिलाने के बाद सिर को आगे की ओर झुकाकर झुकना चाहिए।
6. सिर को आगे की ओर झुकाते हुए, अंगूठे को मध्य-भौंह क्षेत्र में, अर्थात भौहों के बीच के बिंदु पर रखना चाहिए और देवता के पैरों पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करना चाहिए।
7. उसके बाद, हाथ जोड़कर तुरंत नीचे लाने के बजाय, उन्हें एक मिनट के लिए मध्य-छाती क्षेत्र पर इस तरह रखा जाना चाहिए कि कलाई छाती को छूए; उसके बाद ही हाथों को नीचे लाया जाना चाहिए।
“नमस्ते” शब्द संस्कृत भाषा का है। इसमें दो पद हैं – नम:+ते । इसका अर्थ है कि ‘आपका मान करता हूँ।’ संस्कृत व्याकरण के नियमानुसार “नम:” पद अव्यय (विकाररहित) है। इसके रूप में कोई विकार=परिवर्तन नहीं होता, लिङ्ग और विभक्ति का इस पर कुछ प्रभाव नहीं। नमस्ते का साधारण अर्थ सत्कार=मान होता है। आदरसूचक शब्दों में “नमस्ते” शब्द का प्रयोग ही उचित तथा उत्तम है, क्योंकि जब दो सज्जन मिलते है तब उन दोनों का भाव एक-दूसरे का मान करने का होता है।
ऐसे अवसर पर मानसूचक शब्द ही उचित है। भारतवर्ष व संसार भर में अनेक सांप्रदायिक शब्द मान-अर्थ में प्रयुक्त किए जाते है, परंतु भावार्थ से विरुद्ध होने के कारण वे सांप्रदायिक शब्द ठीक नहीं। हिंदुओं में राम-राम, जय गोपाल, जय राम, जय कृष्ण, आदेश, दंडवत, पालागन आदि। राम और कृष्ण महापुरुष हैं, इनके आचरण का अनुकरण करना ठीक है, परंतु यहाँ मिलाई आदि के समय यह प्रकरणसंगत बात नहीं। वैसे भी यदि परमेश्वर का नाम वैदिक साहित्य में देखें तो ‘ओउम’ ही है, राम और कृष्ण आदि नहीं। मुस्लिमों में सलाम, बंदगी आदि यही अवस्था समझे। ऐसे ही जय जिनेन्द्र जैनियों में तथा ईसाई लोग शुभ भावना प्रकट करते है, जैसे “गुड मार्निंग, गुड ईवनिंग, गुड बाई।” इन शब्दों में एक-दूसरे के मान भाव है ही नहीं।
ये सभी शब्द आदर-सत्कार प्रकरण से विरुद्ध होने से ठीक नहीं और त्याज्य है। नम: शब्द के अनेक शुभ अर्थ है जैसे पालन, पोषण, अन्न, जल, वाणी और दण्ड अर्थों का भी ग्रहण होता है। नमस्ते Namaste शब्द वेदोक्त है। वेदादि सत्य शास्त्रों और आर्य इतिहास (रामायण, महाभारत आदि) में ‘नमस्ते’ शब्द का ही प्रयोग सर्वत्र पाया जाता है। पुराणों आदि में भी नमस्ते Namaste शब्द का ही प्रयोग पाया जाता है। सब शास्त्रों में ईश्वरोक्त होने के कारण वेद का ही परम प्रमाण है, अत: हम परम प्रमाण वेद से ही मन्त्रांश नीचे देते है
परमेश्वर के लिए नमस्ते
- दिव्य देव नमस्ते अस्तु॥
हे प्रकाशस्वरूप देव प्रभो! आपको नमस्ते होवे। - विश्वकर्मन नमस्ते पाह्यस्मान॥
- तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम: ॥
सृष्टिपालक महाप्रभु ब्रह्म परमेश्वर के लिए हम नमन=भक्ति करते है। - नमस्ते भगवन्नस्तु ॥
हे ऐश्वर्यसम्पन्न ईश्वर ! आपको हमारा नमस्ते होवे।
बड़े के लिए नमस्ते
- नमस्ते राजन ॥
हे राष्ट्रपते ! आपको हम नमस्ते करते है। - तस्मै यमाय नमो अस्तु मृत्यवे ॥
पापियों के लिए मृत्युस्वरूप दण्डदाता न्यायाधीश के लिए नमस्ते हो। - नमस्ते अधिवाकाय ॥
उपदेशक और अध्यापक के लिए नमस्ते हो।
देवी (स्त्री) के लिए नमस्ते
- नमोsस्तु देवी ॥
हे देवी ! माननीया महनीया माता आदि देवी ! तेरे लिए नमस्ते हो। - नमो नमस्कृताभ्य: ॥
पूज्य देवियों के लिए नमस्ते।
बड़े, छोटे बराबर सब के लिए नमस्ते
- नमो महदभयो नमो अर्भकेभ्यो नमो युवभ्य: ॥
बड़ों बच्चों जवानों को नमस्ते । - नमो हृस्वाय नमो बृहते वर्षीयसे च नम: ॥
छोटे, बड़े और वृद्ध को नमस्ते । - नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नम: ॥
सबसे बड़े और सबसे छोटे के लिए नमस्ते।
नमस्ते और नमस्कार में क्या अंतर है
नमस्कार और लोकप्रिय संस्करण नमस्ते दोनों का संस्कृत में एक ही मूल शब्द है: नमस, जिसका अर्थ है “झुकना या श्रद्धांजलि।” नमस्कार मूल शब्दों नमस और कार से बना है, जिसका अर्थ है “करना”, जबकि नमस्ते नमस और ते से बना है, जिसका अर्थ है “आप।” जैसे, नमस्कार और नमस्ते दोनों ही आदरणीय और बहुत औपचारिक हैं
नमस्ते क्यों कहा जाता है
नमस्कार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के नमस से हुई है जिसका अर्थ होता है एक आत्मा का दूसरी आत्मा के प्रति आभार व्यक्त करना। नमस्ते शब्द नम: और असते से मिलकर बना है। नम: का अर्थ होता है झुकना और असते का अर्थ होता है मेरा अभिमान से भरा हुआ सिर आपके आगे झुक गया है।
नमस्ते और प्रणाम में अंतर
नमस्ते हाथ जोड़कर झुक कर किया जाता है जबकि प्रणाम झुक कर सामने वाले के पैरों को हाथ से छूकर किया जाता है । दोनों शब्द विनम्रतापूर्वक किसी देवता या अगले व्यक्ति के सम्मुख प्रस्तुत करने का जरिया है।
नमस्कार कौन सी भाषा है
नमस्कार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के नमस शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है एक आत्मा का दूसरी आत्मा से आभार प्रकट करना।
नमस्ते क्यों कहा जाता है?
एक आत्मा का दूसरी आत्मा के प्रति आभार व्यक्त करना। नमस्ते शब्द नम: और असते से मिलकर बना है। नम: का अर्थ होता है झुकना और असते का अर्थ होता है मेरा अभिमान से भरा हुआ सिर आपके आगे झुक गया है
नमस्ते से क्या फायदा होता है?
हाथ जोड़कर नमस्ते करने से आपका ब्लड सर्कुलेशन सिस्टम में वृद्धि होती है। मानव शरीर के अंदर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह की भावनाएं छुपी रहती हैं। हाथ जोड़ने से शरीर एक ऊर्जा का संचार शुरू हो जाता है। जिससे आपके आसपास एक सकारात्मक माहौल उत्पन्न हो जाता है और ब्लड सर्कुलेशन सही रहता है।
बड़ों को नमस्ते कैसे करें?
अपने से बड़ों का अभिवादन करने के लिए चरण छूने की परंपरा सदियों से रही है। सनातन धर्म में अपने से बड़े के आदर के लिए चरण स्पर्श उत्तम माना गया है। कहा जाता है कि किसी के सामने झुककर विनम्रतापूर्वक प्रणाम कर व्यक्ति खजाने के रूप में आशीष प्राप्त करता है।
नमस्ते कब बोलना चाहिए?
नमस्ते किसी अन्य व्यक्ति, संस्था या देवता के प्रति प्रशंसा और सम्मान की अभिव्यक्ति है। इसका उपयोग नमस्ते अभिवादन और यहां तक कि अलविदा के रूप में भी किया जा सकता है, इसलिए आप किसी से मिलने पर, या अलग होने से पहले नमस्ते कह सकते हैं ।
राजस्थान में नमस्ते कैसे कहते हैं?
खम्मा घणी अतः खम्मा घणी, इस अभिवादन का अर्थ है, आपके आतिथ्य सत्कार में मेरे द्वारा किसी भी प्रकार की चूक अथवा अनादर हुआ हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।
नमस्ते का मतलब धन्यवाद होता है?
इसका उपयोग विनम्र अभिवादन के रूप में और “धन्यवाद” कहने के साधन के रूप में भी किया जाता है। योग कक्षाओं में, शिक्षक और छात्रों के लिए परस्पर सम्मान के संकेत के रूप में कक्षा के अंत में नमस्ते का आदान-प्रदान करना पारंपरिक हो गया है।
नमस्कार का फुल फॉर्म क्या है?
नमस्ते या नमस्कार को संस्कृत में विच्छेद करें तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः + अस्ते। नमः का मतलब होता है झुक गया और असते मतलब सर( अहंकार या अभिमान से भरा) यानि मेरा अहंकार से भरा सिर आपके सामने झुक गया।
नमस्कार को संस्कृत में क्या कहते हैं?
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।
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