गणेश जी की कहानी खीर वाली क्या आप जानते हैं

गणेश जी कि कथा कहानी जो बहुत प्रचलित है. हमेशा से व्रत-उपवास के समय कही सुनी जाती है. हम इस पोस्ट में दो गणेश जी की कहानी कथा बताने जा रहे हैं जो बहुत ही लोकप्रिय है मेरे बाल्यकाल की स्मृतियो की सबसे प्रिय कथा है क्योंकि इस के कारण मेरी श्रद्धा गणपति जी मे आरम्भ हुई ,ये कथा सभी ने एक बार अवश्य सुनी होगी और मुझे इस कथा में वही आनन्द मिलता है जो बालपन में मिलता था।

गणेश जी की कहानी खीर वाली

एक बार गणेशजी ने पृथ्वी के मनुष्यों परीक्षा लेने का विचार किया. वे अपना रुप बदल कर पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे. उन्होंने एक बालक का रूप बना लिया. एक हाथ में एक चम्मच में दूध ले लिया और दूसरे हाथ में एक चुटकी चावल ले लिए और गली-गली घूमने लगे, साथ ही साथ आवाज लगाते चल रहे थे, “कोई मेरे लिए खीर बना दे, कोई मेरे लिए खीर बना दे…”. कोई भी उनपर ध्यान नहीं दे रहा था बल्कि लोग उनपर हँस रहे थे. वे लगातार एक गांव के बाद, दूसरे गांव इसी तरह चक्कर लगाते हुए पुकारते रहे. पर कोई खीर बनाने के लिए तैयार नहीं था. सुबह से शाम हो गई गणेश जी लगातार घूमते रहे.

एक बुढ़िया थी. शाम के वक्त अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी हुई थी, तभी गणेश जी वहां से पुकारते हुए निकले कि “कोई मेरी खीर बना दे, कोई मेरी खीर बना दे. ”बुढ़िया बहुत कोमल ह्रदय वाली स्त्री थी. उसने कहा “बेटा, मैं तेरी खीर बना देती हूं.” गणेश जी ने कहा, “माई, अपने घर में से दूध और चावल लेने के लिए बर्तन ले आओ.” बुढ़िया एक कटोरी लेकर जब झोपड़ी बाहर आई तो गणेश जी ने कहा अपने घर का सबसे बड़ा बर्तन लेकर आओ. बुढ़िया को थोड़ी झुंझलाहट हुई पर उसने कहा चलो ! बच्चे का मन रख लेती हूं और अंदर जाकर वह अपने घर सबसे बड़ा पतीला लेकर बाहर आई. गणेश जी ने चम्मच में से दूध पतीले में उडेलना शुरू किया तब, बुढ़िया के आश्चर्य की सीमा न रही, जब उसने देखा दूध से पूरा पतीला भर गया है. एक के बाद एक वह बर्तन झोपड़ी बाहर लाती गई और उसमें गणेश जी दूध भरते चले गए. इस तरह से घर के सारे बर्तन दूध से लबालब भर गए. गणेश भगवान ने बुढ़िया से कहा, “मैं स्नान करके आता हूं तब तक तुम खीर बना लो. मैं वापस आकर खाऊँगा.”

बुढ़िया ने पूछा, “मैं इतनी सारी खीर का क्या करूंगी ?” इस पर गणपति जी बोले, “सारे गांव को दावत दे दो.” बुढ़िया ने बड़े प्यार से, मन लगाकर खीर बनाई. खीर की भीनी-भीनी, मीठी-मीठी खुशबू चारों दिशाओं में फैल गई. खीर बनाने के बाद वह हर घर में जाकर खीर खाने का न्योता देने लगी. लोग उस पर हँस रहे थे. बुढ़िया के घर में खाने को दाना नहीं और यह सारे गांव को खीर खाने की दावत दे रही है. लोगों को कुतूहल हुआ और खीर की खुशबू से लोग खिंचे चले आए. लो ! सारा गाँव बुढ़िया के घर में इकट्ठा हो गया.

जब बुढ़िया कि बहू को दावत की बात मालूम हुई, तब वह सबसे पहले वहां पहुंच गई. उसने खीर से भरे पतीलों को जब देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया. उसे बड़ी जोर से भूख लगी हुई थी. उसने एक कटोरी में खीर निकाली और दरवाजे के पीछे बैठ कर खाने की तैयारी करने लगी. इसी बीच एक छींटा गिर गया और गणपति जी को भोग लग गया और वो प्रसन्न हो गए.

अब पूरे गांव को खाने की दावत देकर, बुढ़िया वापस अपने घर आई तो उसने देखा बालक वापस आ गया था. बुढ़िया ने कहा, “बेटा खीर तैयार है, भोग लगा लो.” .गणपति जी बोले, “मां, भोग तो लग चुका है. मेरा पेट पूरी तरह से भर गया है. मैं तृप्त हूँ. अब तू खा, अपने परिवार और गाँव वालों को खिला.” बुढ़िया ने कहा, “यह तो बहुत ज्यादा है. सबका पेट भर जाएगा इसके बाद भी यह बच जाएगी. उस बची खीर का मैं क्या करूंगी.” इस पर गणेश जी बोले उस बची खीर को रात में अपने घर के चारों कोनों में रख देना और बुढ़िया ने ऐसा ही किया.

जब सारा गांव जी भर कर खा चुका तब भी ढेर सारी खीर बच गई. उसने उसके पात्रों को अपने घर के चारों तरफ रख दिया. सुबह उठकर उसने क्या देखा ? पतीलों में खीर के स्थान पर हीरे, जवाहरात और मोती भर गए हैं. वह बहुत खुश हूं. उसकी सारी दरिद्रता दूर हो गई और वह आराम से रहने लगी. उसने गणपति जी का एक भव्य मंदिर बनवाया और साथ में एक बड़ा सा तालाब भी खुदवाया. इस तरह उसका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया. उस जगह वार्षिक मेले लगने लगे. लोग गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए, उस स्थान पर पूजा करने और मान्यताएं मानने के लिए आने लगे. गणेश जी सब की मनोकामनाएं पूरी करने लगे.

कहानी के अंत में वही, मैं आज भी यही शुभकामनाएं दे रही हूँ. “कहते को, सुनते को, हुँकारे भरते को, जैसी कृपा गणेश भगवान ने बुढ़िया पर की, वैसी कृपा, हम सब पर करना, हम सब पर करना…”

ॐ गं गणपतये नमः
जय श्री गणेश जय कार्तिकेय

गणेश जी की कथा

एक गाँव में सुरेश और उमेश दो कुबड़े साथ-साथ रहते थे। सुरेश बहुत धनी और उमेश बहुत गरीब था। दोनों में गहरी मित्रता थी तथा दोनों ही गणेशजी के परम भक्त थे। एक दिन उमेश ने सुरेश से कहा , ” मैं तुम पर बोझ बनकर नहीं रहना चाहता हूँ। तब सुरेश ने कहा, ” ऐसा करो तुम मेरे काम में हाथ बंटा दिया करो। ” उमेश ने उसकी बात रखते हुए हर काम में सहयोग करना प्रारम्भ कर दिया।

धीरे धीरे सुरेश उमेश से बहुत अधिक काम लेने लग गया। वह अपमान भी करने लग गया, व्यवहार भी रुखा हो गया। एक दिन दुखी होकर उमेश वन में चला गया। उसने अपने आराध्य गणेश जी को याद किया।

गणेश जी पहले से ही उमेश की अवस्था से परिचित थे। वे एक यक्ष क रूप धरकर उमेश के समक्ष प्रकट हुए। उस पर दया कर उन्होंने उसे एक सोने के सिक्कों से भरी थैली दी और कहा , ” यदि सदैव अच्छा आचरण करोगे तो तुमको इस थैली से हर आवश्यकता के समय सिक्के मिलते रहेंगे। ” यह कहते हुए उसकी पीठ पर हाथ फेरा। इससे उसकी कूबड़ गायब हो गई।

जब उमेश घर गया तो उसने सारी बात सुरेश को भी बता दी। सुरेश के मन में लोभ जागा । वह भी जंगल में गया, गणेश जी को याद किया, यक्ष रूप में गणेश जी उसके सामने प्रकट हुए, गणेश जी उसके मन के लोभ को जानते थे, उन्होंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा तो एक कूबड़ और हो गई, सिक्कों की थैली भी नहीं दी।

उमेश घबरा गया। उसने अपने किये के लिए क्षमा करने की प्रार्थना की। गणेश जी ने कहा, ” तूने अपने मित्र का दिल दुखाया है, उसके साथ दुर्व्यवहार किया है, लोभ किया है, इसकी सजा तो भुगतनी ही होगी। परन्तु तू मेरा भकत है इसलिए यदि तू अपने किये पर सच्चे मन से सुरेश से क्षमा मांग ली तो तेरी कूबड़ ठीक हो जायेगी। ” उमेश गणपति का आभार व्यक्त करते हुए शीघ्रता से घर गया। उसने मित्र से सच्चे मन से क्षमा प्रार्थना की। उसका कष्ट दूर हो गया।

हे गणेशजी जैसे तुमने सही आचरण करने वाले उमेश को दिया और सुरेश को क्षमा किया वैसे ही सबके साथ करना ।

यह भी पढ़ें – गाय की कहानी

यह भी पढ़ें – धर्मराज जी की कहानी

गणेश जी का बड़ा पेट क्या दर्शाता है?

खुशहाली का प्रतीक है

गणेश जी का कटा हुआ सिर का क्या हुआ?

गणेशजी का जो मस्तक कटा था, उसे शिवजी ने एक गुफा में रख दिया।

गणेश जी का सबसे प्रिय क्या है?

उन्हें गुड़ के मोदक और बूंदी के लड्डू , शामी वृक्ष के पत्ते तथा सुपारी भी प्रिय है।

गणेश जी की बहन का नाम क्या है?

अशोक सुंदरी हैं।

गणेश जी का असली नाम क्या है?

विनायक

भगवान गणेश का दांत किसने तोड़ा?

परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी से खुद को गणेश पर फेंका और गणेश ने अपने पिता के सम्मान में खुद को चोट लगने दी और परिणामस्वरूप अपना दांत खो दिया।

error: Content is protected !!