5 Best Daughter poem | बेटी का दर्द कविता | बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ एक बेटी का दर्द

नमस्कार दोस्तों हमारे पास 5 बेस्ट बेटी के जीवन पर आधारित कविता है जो बेटियों के जीवन को कविता के माध्यम से दर्शाया गया है बेटी के मन को तकलीफ ना हो इसके लिए बेटियों से दोस्तों की तरह बर्ताव करना चाहिए

आइए कन्या के जन्म का उत्सव मनाएं। 5 Best Daughter poem हमें अपनी बेटियों पर बेटों की तरह ही गर्व होना चाहिए। मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि अपनी बेटी के जन्मोत्सव पर आप पांच पेड़ लगाएं।

बेटी का दर्द कविता

1,Daughter poem

तर्ज-अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
भारत माता की बेटी की अब लाज तुम्हारे हाथों में।
करते विनती प्रभु चरणों में सम्मान तुम्हारे हाथों में।।
बाबा की नन्ही-सी गुड़िया दुनिया के छल-कपट का न ज्ञान।
मासूम कली मां की बगिया की कैसे करे किसी की पहचान?
भारत माता की बेटी की अब लाज तुम्हारे हाथों में।
करते विनती प्रभु चरणों में सम्मान तुम्हारे हाथों में।।
जो सीख ना पायी बोलना भी मां की गोदी में समायी जान।
मां के आंचल की नन्ही परी मां के दिल में है उसका स्थान।।
भारत माता की बेटी की अब लाज तुम्हारे हाथों में।
करते विनती प्रभु चरणों में सम्मान तुम्हारे हाथों में।।
गोदी में जो अक्सर खिलाता था,बेटी कहकर वह बुलाता था।
हंस-हंसकर उसे दुलारता था,टाॅफी,चाकलेट वह खिलाता था।।
भारत माता की बेटी की अब लाज तुम्हारे हाथों में।
करते विनती प्रभु चरणों में सम्मान तुम्हारे हाथों में।।
अम्मा,बाबा बहुत खुश होते,वे तो समझते उसे अच्छा इंसान।
अपनापन खूब लुटाता था,नहीं होता उन्हें नीयत का भान।।
भारत माता की बेटी की अब लाज तुम्हारे हाथों में।
करते विनती प्रभु चरणों में सम्मान तुम्हारे हाथों में।।
पापी,कपटी,दरिन्दा वह नहीं कर पाये वे उसकी सही पहचान।
कर अस्मिता पर हमला उसने तार-तार किया उनका अभिमान।।
भारत माता की बेटी की अब लाज तुम्हारे हाथों में।
करते विनती प्रभु चरणों में सम्मान तुम्हारे हाथों में।।
रोने चीखने की आवाजें सुन माता-पिता का गया था ध्यान।
क्यों जन्म दिया माता ने मुझे जो बचा न सकी मेरा सम्मान?
भारत माता की बेटी की अब लाज तुम्हारे हाथों में।
करते विनती प्रभु चरणों में सम्मान तुम्हारे हाथों में।।
ऐसे पापी,वहशी,दरिन्दे को चौराहे पर खड़ा कर फांसी दे दो।
या फिर खूंखार जानवरों का भोजन बनाकर उसके प्राण हरो।।
भारत माता की बेटी की अब लाज तुम्हारे हाथों में।
करते विनती प्रभु चरणों में सम्मान तुम्हारे हाथों में।।

2, Daughter poem

ये चिकनी सुंदर अपवाद सी सास है,
मीठे से रिश्तों मे जहर घोलती है…,
बहू का जीना दुश्वार कर गिरगिट सा
रंग बदल,अच्छाई का ढोंग करती है।
एक बहू को निकाल घर से स्वार्थ-सिद्धि
हेतु फिर से उसी के गुणगान गाती है..
अपनी ही बेटी को केरोसिन से जलने को
मजबूर कर बच्चों को निस्सहाय बनाती हैं।
कुटिल मुस्कान से साजिशों का जाल बुन,
झूठ का चादर ओढ़े,राम का नाम लिखने
वाले हाथो से अपने ही शरीर पर कुरैद
कर नाखून बहू को बदनाम करती हैं….।
बेटे को इमोशनल ब्लैकमेल कर बहू के
दांपत्य जीवन में आग लगाती है….
यह मंथरा सी लपेटकर शहद में शब्दों
को राम आश्रय मे महाभारत रचती है।
बहू के जीवन की सुपारी मे लाखों रुपए
के इंतजाम मे बेटे के कानों में जहर घोल
अपनी ही पोतियों के सिर से……!!!
“माँ” का साया उठाने को तैयार रहती हैं।
ये अपवाद सी सास .!!कैंसर पीड़ित बहू,
शरबत में हारपिक मिला मौत के घाट
उतारने की साजिश रचती हैं…… ….
ये चालबाज खुद को निर्दोष साबित करने
को बहू के मायके को ही हुलाहना देती है
बहू के एक्सीडेंट पर खैर-खबर ना लेती है,
बहू के दुख-दर्द से रिश्ता दूरररर ..पर
बहू की कमाई पर अधिकार पूरा जताती है।
ये अपवाद सास तो,,,,”” सास””
के नाम को ही बदनाम करती हैं……..।

3, Daughter poem

विवाह….. विवाह बहुत ही खूबसूरत सी रस्मों के मिलन से बना एक सुखद एहसास होता हैं…. विवाह की कई रस्मों में सबसे महत्वपूर्ण और भावपूर्ण रस्म होती हैं…. कन्यादान…. जब भी कन्यादान की सोचो दिल में दर्द के साथ साथ ढेरों ख़ुशियाँ और आशीष निकलती है बिटिया के लिये….
कई बार मन में सवाल भी उठता है कि जिस बेटी को इतने वर्षों नाज़ुक से पाला, इतना प्यार लुटाया… कैसे समाज ने उसे दान देकर कन्यादान का नाम करवाया? मन तो करता हैं बेटी से कहूँ….
तुम कोई सामान नहीं जिसे
मैं दान दे दूँ
तुम जिस पवित्र बंधन में बँध
रही हो उसे कैसे दान कह दूँ?
कन्यादान के बाद विदा होकर
ज़रूर जाओगी
लेकिन मान तुम हमेशा दो कुल
का ही कहलाओगी
ये घर संसार हमेशा तुम्हारा भी
रहेगा
जब दिल करें चली आना
जहाँ तुम रहो वहाँ प्यार
बरसाना
बड़ों को सम्मान और छोटो
को अपना बनाना
तुम्हारी दुनिया में सबके साथ
खुश रहना तुम
पर कभी भी घुट घुट कर ना
जीना तुम
घर की लक्ष्मी और अन्नपूर्णा
का रूप तुममें
विदा हो कभी हमसे अलग ना
समझना खुद को
असहाय,अबला ना पाना खुद को,
पति का बराबर साथ निभाना तुम,
जीवन हैं उतार चढ़ाव आयेंगे
लेकिन कभी ना घबराना तुम,
सेतुबंध बन दो परिवार को
जोड़े रखना
प्रेम और सम्मान से सबको
साथ लें चलना तुम
सीख हमारी ध्यान रखना
परिवार का मान बरकरार
तुम रखना ….
दान नहीं तुम्हें कभी हम करने वाले
प्रेम से नये रिश्तों में जोड़ रहें….

4, Daughter poem

मैं नहीं सिखा पाऊँगी अपनी बेटी को बर्दाश्त करना एक ऐसे आदमी को जो उसका सम्मान न कर सके।
कैसे सिखाए कोई माँ अपनी फूल सी बच्ची को कि पति की मार खाना सौभाग्य की बात है?
मैंने तो सिखाया है कोई एक मारे तो तुम चार मारो।
हाँ, मैं बेटी का घर बिगाड़ने वाली बुरी माँ हूँ, ………
लेकिन नहीं देख पाऊँगी उसको दहेज के लिए बेगुनाह सा लालच की आग में जलते हुए।
मैं विदा कर के भूल नहीं पाऊँगी, अक्सर उसका कुशल पूछने आऊँगी। हर अच्छी-बुरी नज़र से, ब्याह के बाद भी उसको बचाऊँगी।
बिटिया को मैं विरोध करना सिखाऊँगी।
ग़लत मतलब ग़लत होता है, यही बताऊँगी। देवर हो, जेठ हो, या नंदोई, पाक नज़र से देखेगा तभी तक होगा भाई।
ग़लत नज़र को नोचना सिखाऊँगी, ढाल बनकर उसकी ब्याह के बाद भी खड़ी हो जाऊँगी।
“डोली चढ़कर जाना और अर्थी पर आना”, ऐसे कठिन शब्दों के जाल में उसको नहीं फसाऊँगी।
बिटिया मेरी पराया धन नहीं, कोई सामान नहीं जिसे गैरों को सौंप कर गंगा नहाऊँगी।
अनमोल है वो अनमोल ही रहेगी।
रुपए-पैसों से जहाँ इज़्ज़त मिले ऐसे घर में मैं अपनी बेटी नहीं ब्याहुँगी।
औरत होना कोई अपराध नहीं, खुल कर साँस लेना मैं अपनी बेटी को सिखाऊँगी।
मैं अपनी बेटी को अजनबी नहीं बना पाऊँगी।
हर दुःख-दर्द में उसका साथ निभाऊँगी, ज़्यादा से ज़्यादा एक बुरी माँ ही तो कहलाऊँगी।

5, Daughter poem

बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ एक माँ का दर्द

 

क्या पढ़ायें ? कैसे बचायें ? बेटी, एक माँ कह रही है ।

जब सरेआम कॉलेज में पढ़ रही ,बेटी पे गोली चल रही है ।।

कोई कहता है बेटी सिर पर भार है ,पर मैंने तो उसे बेटे से भी बढ़कर पाला ।

हर रास्ते सुगम बनाए ,बहादुरी से जीना सिखाया ,हर डगर पर , हर मोड़ पर सम्भाला ।।

फिर किस खता की सजा, मेरी हर मासूम बेटियों को मिल रही है |

क्या पढ़ाएं …? वह जब दुनिया में आई ,तो कईयों ने मुँह बनाया ।

पर मैंने कहा मेरे घर लक्ष्मी आई है ,उसे देख मेरा मन हर पल ,हर बार खुशी से मुस्कुराया ।।

लगता है नन्ही परी पायल पहने अभी भी ,मेरे आँगन में छन्न छन्न चल रही है ।

क्या पढ़ाएं…?

वह नन्हें कदम कब अपने रास्ते ,तय करने लगे पता ही नहीं चला |

वह बढ़ती रही आगे बना के ,हर विषमताओं से जरूरी फासला ।।

जाना ही नहीं मेरी लाड़ली किन मुश्किलों से गुज़र |

जालिम दुनिया से लड़ रही है ।क्या पढ़ाएं…||

लड़ते लड़ते आततायियों से, शहीद हो गई वो आखिर में ।

सरेराह भीड़ के बीच ,मारी गई गोली सिर में ।।

मेरी तो चली गई इस जहान से ,औरों की तो बचाओ,

जाने कितनी ललनायें इसी दहशत में पल रही हैं ।

क्या पढ़ाएं…? Daughter poem

 

ये जानती कि वो अब लौटेगी नहीं घर ,तो छुपा लेती उसे आंचल में अपने ।

बच जाती वो और ममता मेरी ,टूट भले जाते उसके सपने ।।

उसके सपनों की दुनिया सजाने के बदले ,आज हमारी दुनिया धू-धू कर जल रही है ।

क्या पढ़ाएं…?

 

error: Content is protected !!