4 Sad poem on farmers | किसानों पर दर्द भरी कविता

यदि मनुष्य कोई अपना दुख और दर्द बताता हैं तो सुनने वाला केवल सुनकर निकल जाता है कविता ही एक ऐसा माध्यम है कि किसानों के दर्द का ध्यान उस पर जाता है

हमने रिसर्च करके 4 बेस्ट किसानों पर कविता लाया हूं जिसे आप पढ़ कर किसानों के दुख और दर्द को समझ सकते हैं

किसानों के दर्द से भरी चार बेहद अच्छी बेहद मार्मिक कविता आप सभी के लिए।… सभी किसान भाईयों को दिल से सैल्यूट
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Sad Poem on Farmers

1, किसानों पर दर्द भरी कविता

जो देता है खुशहाली जिसके दम से हरियाली
आज वही बर्बाद खड़ा है देखो उसकी बदहाली।
बहुत बुरी हालत है ईश्वर धरती के भगवान् की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की…
ऐसी आंधी चली की घर का तिनका तिनका बिखर गया
आखिर धरती माँ से उसका प्यारा बेटा बिछड़ गया
अखबारो की रद्दी बनकर बिकी कथा बलिदान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की

इतना सूद चुकाया उसने की अपनी सुध भूल गया
सावन के मौसम में झूला लगा के फाँसी झूल गया।
अमुआ की डाली पर देखो लाश टंगी ईमान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की…..

एक अरब पच्चीस करोड़ की भूख जो रोज मिटाता है
कह पता नही वो किसी से जब भूखा सो जाता है
फिर सीने पर गोली खाता सरकारी सम्मान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की
किसी को काले धन की चिंता किसी को भ्रष्टाचार की
मगर लड़ाई कौन लड़ेगा फसलों के हक़दार की
सरे आम बाजार में इज्जत लुट जाती खलिहान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की

जो अपने कांधे पर देखो खुद हल लेकर चलता है
आज उसी की कठिनाइयों का हल क्यों नही निकलता है।
है जिससे उम्मीद उन्हें बस चिंता है मतदान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की…

देख कलेजा फट जाता है, आँखों से आंसू बहते
ऐसा न हो कलम रो पड़े सच्चाई कहते कहते
बाली तक गिरवी रक्खी है बेटी के अभिमान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की…
चीख पड़ी खेतो की माटी तड़प उठी गम से धरती
बिना कफ़न के पगडण्डी से गुजरी जब उसकी अरथी।
और वही विदा हो गया जिसे चिंता थी कन्यादान की
टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की।।
—-कवि सुदीप भोला

 

 

2. किसानों पर दर्द भरी कविता

कविता पढ़ें
जो किसान
खेत में टिटहरी के
अण्डे नजर आने पर
उतनी जगह की जोत
छोड़ देता है
वो यात्रियों से भरी बस के
काँच कैसे फोड़ देता है ?

जो किसान
खड़ी फसल में
चिड़िया के अंडे/चूजे देख
उतनी फसल नहीं काटता है
वो किसी की सम्पत्ति
कैसे लूट सकता है ?

जो किसान
पिंडाड़े में लगी आग में कूदकर
बिल्ली के बच्चे बचा लेता है
वो किसी के घर में
आग कैसे लगा देता है ?

जो किसान
दूध की एक बूंद भी
जमीन पर गिर जाने से
उसे पोंछकर माथे पर
लगा लेता है
वो उस अमृत को
सड़कों पर कैसे बहा देता है ?

जो किसान
गाड़ी का हॉर्न बजने पर
सड़क छोड़ खड़ा हो जाता है
वो कैसे किसी का
रास्ता रोक सकता है ?

जो किसान
चींटी को अंडा ले जाते
चिड़िया को धूल नहाते देख
बता सकता है कि
कब पानी आएगा
वो कैसे किसी के
बहकावे में आयेगा ?

ये दुखद घड़ी क्यों आई
कुछ तो चूक हुई है
कुछ पुरुस्कार में फूल गए
नदी से संवाद करने वाले
किसानों से संवाद करना भूल गए

जो किसान
अपनी फसल की
रखवाली के लिए
खुले आसमान के नीचे
आंधी तूफान हिंसक जानवर से
नहीं डरता
वो बन्दूक की गोली से नहीं
मीठी बोली से मानेगा
एक बार उसके अन्दर का
दर्द अच्छे से जानिए
वो अन्नदाता है
उसे केवल मतदाता मत मानिये

 

3, किसानों पर दर्द भरी कविता

जयजवानजय_किसान
किसानों को समर्पित हमारी यह कविता
साथियों जरा गौर करेंगे तो आनंद आएगा।

हलों के निशानों सी
गहरा गई हैं त्योरियां।
हल चलाने वालों ने
करके दुश्मन की निशानदेही
दर्दों पर हल चलाया है।
बहुत कुछ देखा है इस धरती ने।
नहरों के बंद खाने खोले थे बुजुर्गों ने।
फरसा छीना आज भी ललकारता है
मालवे में बिसवेदारों को
भगाया था मुजारों ने किशनगढ़ से
हड़काया था मंडी-मंडी गाँव-गाँव से।
भगाया था सफेदपोशों को सुरखपोशों ने
#इतिहासनेदेखा।

तानाशाही का सामना करते
खुश रहने के कर को ललकारते
आज भी हैं यादों में जागते
चोर चाचा भतीजा डाकू
चौपालों में गाते जांबाज।
ढेरियों की रखवाली करना जानते हैं।
तंग ज़ेलियों वाले।
लड़े सरकारों से हर बार।

देखा पर ये पहली बार
अलग सा सूरज
नई किरणों संग हुआ उदय।
दुश्मन की निशानदेही हुई है।
कॉरपोरेट घरानों के
कंपनी शाहों को
रावण के साथ जलाया है।
दशहरे के मायने बदले हैं।
वक़्त की छाती पर
दर्दमंदों की आहों ने
नई अमिट इबारत लिखी है।

हमें नचाने वाले खुद नाचते हैं
हकीकतों के द्वार।
बेशर्म ठहाकों में घिर गए
तीन मुँह वाले शेर छिपते फिरते हैं।
तख्तियों वाले तख़्त को ललकारते हैं।

कभी कभी इस तरह भी होता है
कि बिल्ला खुद पैर रख
अपने आप ही
फँस जाए जलते तंदूर में।
काढ़नी से
दूध पीता कुत्ता गर्दन फँसा बैठे।
चोर घुसते ही पकड़ा जाए।
गीदड़ मार खाता
फँसा फँसा बेशर्मी से
कुछ कहने लायक न रहे।
पहली बार हुआ है
कि खेत आगे-आगे चल रहे हैं
कुर्सियाँ पीछे-पीछे
बिन बुलाए बारातियों सी।
हमें भी ले चलो यार कहती।
मनु स्मृति के बाद
नए अछूत घोषित हुए हैं
वक़्त की अलिखित किताब में।

पहली बार
तूँबी ढड-सारँगीयों से
दर्द-बंटाने वाली धुनें निकली हैं
समय ने आईना दिखलाया आलापों को
मुक्के बने ललकार
चीख बनी दहाड़
और आवाज़ पा गया भीतर का दर्द
मुक्ति को पता मिला है।

जो पक रहा था
बाहर आया है
साज़िशें, चालें, षड्यंत्र,
कन्याकुमारी से कश्मीर तक
हुआ है एक भारत
लूट-तंत्र के ख़िलाफ़

किताबों से बहुत पहले
वक़्त बोला है।
नागपुरी संतरों का रंग
लोक-दरबार में फीका पड़ा है।

मंडियों में तड़पता है अनाज।
आढ़तियों आहें भरी हैं।
पल्लेदारों ने कस ली कमर
सड़कों, रेलवे-ट्रेक ने
दादे-पोते
दादी पोती
ज़िंदाबाद के रूप में देखा है।

पहली बार
बंद घरो के भीतर
लगे दर्पणों ने बताया है
असल किरदार
कि कुर्सियों
नाच नचाया नहीं
बल्कि
झाँझर पहन खुद नाच किया है।

काठ की पुतली नचाते
तनावों के पीछे वाले हाथ नंगे हुए हैं।

पराली के बीच
उगने से गेहुँ का इंकार है।
सहम गया है ढाब का पानी
खूँटों से बंधी
गाय-भैंसे
दूध नहीं देती।
दूध पीने वाली बिल्ली
थैली से बाहर आई है।
हाली-पाली अर्थशास्त्री हुए हैं
बिना गए स्कूल-कॉलेज की
क्लासेस में बोल रहे हैं
शब्द दर शब्द
खोलते हैं अर्थ सत्ता की व्याकरण के।
गुट जुड़ें न जुड़ें
अर्थ कतार लगाए खड़े हैं।
पहली बार अर्थों ने शब्दों
कठघरे में खड़ा कर ला-जवाब किया है।
अंबर के
तारों की छाँव में
मुद्दत बाद देखे हैं
बेटे-बेटियाँ
लंगर बनाते-खिलाते।
सूरज और चंद्रमा ने
बेरहम तारामंडल नजदीक से देखा है।
कंबल की ठंड वाले महीनें में
अंदर दहकती है आग।
पसीने से भीगा है
पूरा तन-बदन।

झंडे सामने झंडियाँ मुजरिम लगे हैं।
#चौकीदारों_को
सवालों ने किया छ्लनी
बिन तीर-तलवार।
गोदी बैठे लाडले अक्षर
चौंक में हुए हैं अविश्वासी।
सवालों का कद
बढ़ गया है जवाबों से।

#कृष्णकांत_यादव
विधानसभा हंडिया, प्रयागराज

 

4, किसानों पर दर्द भरी कविता

अब दुख बहुत है कि मैं एक किसान हूँ कृपया 2 मिनट वक्त निकाल के 4 लाइन की पूरी कविता पढ़े हम किसानों का दर्द सब समझ जाएंगे । किसी किसान ने सही कहा है ~
चीर के जमीन को, मैं उम्मीद बोता हूँ…
मैं किसान हूँ, चैन से कहाँ सोता हूँ…,

मैं भारतवर्ष का किसान हूँ |

मैं कागज़ पे बहुत महान हूँ |

मुझे अन्नदाता कहते हैं |

इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र या राजनीति शास्त्र

हर किताब में मेरा जिक्र है |

हजारों योजनाएं, परियोजनाएं मेरे नाम पे चलती हैं |

देश में गरीबी हटानी है, इसलिए फोकस मुझपे होता है |

इन सब के बावजूद मैं असल में अति साधारण इंसान हूँ |

इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि

मेरे लाखों भाई बहन पिछले दशक में अपने प्राण त्याग चुके हैं |

उनकी जिंदगी इतनी भरी हो चली थी

कि मौत का रास्ता उन्हें हल्का और आसान दिखाई दिया |

हम किसान देश को खिलाते हैं

पर खुद भूखे रह जाते हैं |

अपना पेट, परिवार पाल नहीं पाते हैं |

मौसम और सरकार की मार

चुपचाप झेल जाते हैं |

कर्ज में डूबे रहते हैं हम

जीवन अपना संघर्ष और गम

आँखें चौबीस घंटे नम

दिक्कते नहीं होती कम |

में भारतवर्ष का किसान हूँ

आज तो हूँ, पर पता नहीं

कल रहूँ या न रहूँ |

जय जवान ।जय किसान।।

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